Thursday 18 April 2024

Bhajan 4

 

4

eksgu cl x;ks bu uSuu esa

yksd ykt dqy dku NwV xbZ ;kdh usg yxu esa

ftr ns[kks frr gh og nh[ks ?kj ckgj vkWaxu esa

vax vax izfr jkse jkse esa Nk; jgks ru eu esa

dqUMy >yd diksyu lksgs cktwcUn ckWagu esa

dxau dhyr yfyr ou ekyk uiqj /kqu pjuu esa

piy uSu Hk`dqfV oV ckadh BkM+ks l?ku yru esa

ukjk;u fcu eksy fcdkuh ;kfd usd gWalu esa

Bhajan 4

 

cztjkt dgha j?kqjkt dgh fur :i vuwi fn[kkor gks

dHkh rhj deku gS gkFkksa esa uSuu ds lsu fn[kkor gks

;s gS fo'o rqEgkjs gkFkksa esa fQj ukFk ca/ks D;ksa mjoy ls

dHkh Qwy ls dksey vki cus dHkh u[k ij fxjoj /kkjs gks

ogh vkidk nj'ku ik;s gS ftls Kku ds uSu fn;s rqeus

gS okl rqEgkjk ?kV ?kV esa eu dqat esa jkl jpkor gks

jl jkt fujkys gks uV[kV lalkj dks ukp upkor gks

Tuesday 26 March 2024

Bhajan 3.4

 

cztjkt dgha j?kqjkt dgh fur :i vuwi fn[kkor gks

dHkh rhj deku gS gkFkksa esa uSuu ds lsu fn[kkor gks

;s gS fo”o rqEgkjs gkFkksa esa fQj ukFk ca/ks D;ksa mjoy ls

dHkh Qwy ls dksey vki cus dHkh u[k ij fxjoj /kkjs gks

ogh vkidk nj”ku ik;s gS ftls Kku ds uSu fn;s rqeus

gS okl rqEgkjk ?kV ?kV esa eu dqat esa jkl jpkor gks

jl jkt fujkys gks uV[kV lalkj dks ukp upkor gks

 

 

                            

4

eksgu cl x;ks bu uSuu esa

yksd ykt dqy dku NwV xbZ ;kdh usg yxu esa

ftr ns[kks frr gh og nh[ks ?kj ckgj vkWaxu esa

vax vax izfr jkse jkse esa Nk; jgks ru eu esa

dqUMy >yd diksyu lksgs cktwcUn ckWagu esa

dxau dhyr yfyr ou ekyk uiqj /kqu pjuu esa

piy uSu Hk`dqfV oV ckadh BkM+ks l?ku yru esa

ukjk;u fcu eksy fcdkuh ;kfd usd gWalu esa

 

 

Monday 25 March 2024

Bhajan 1-2

 

dk fnu oa'kh Qsj ctkosxks crk ns oa'kh okys

crk; ns oa'kh ckjs crk; ns uUn nqykjs

vk¡/kh jkr rd uhan u vkos fQj lius eSa rw rjlkos

vjs dc eks; ikl fcBkosxks crk;

lkl uun esjh g¡lh mM+kos irh esjs ij xqLlk gksos

vjs dc eksdw vk; galkosxks crk; ns

ehjk nj'ku dh gSs I;klh tUe tUe dh rsjh nklh

dc vius pju clkosxks crk; ns

nkl izHkq djs vk'kk rssjh ykt cpkosxks dc esjh

vjs dc eks; vku glkosxks crk; ns

 

[kkfrj djyS ubZ xqtfj;k jfl;k BkM+ks rsjs }kj

;s jfl;k rsjs fuÙk u vkos izse gks; tc nj'ku ikos  

v/kjk e`r dkS Hkksx yxkos

dj egekuh vc er pwds le; u ckjEckj

fgjns dks pksyk dj gsyh usg dks pUnu fpjp uosyh

nh{kk ys cu tb;ks psyh

iqrfju iyax foNk; iyd ds djys cUn fdokj

tks dqN jfl;k dgs lks dfj;ks lkl llqj                                dks Mj er dfj;ks lksyg dks cÙkhl igub;ks

nsns nku lwe dh lEifÙk thou gS fnu pkj

lcls rksM+ uSu dh Mksjh tequk ikj mrj py xksjh

fu/kjd [skyks dfj;ks gksjh

“;ke jax p<+ tk; tk fnuk gS tk; csM+k ikj

Wednesday 13 December 2023

jeevan ka Arambh

 जीवन  का आरम्भ


यद्यपि विज्ञान ने इतनी तरक्की की है कि इंसान चांद पर जा पहुँचा हैए परख नली शिशु उत्पन्न हो रहे हैंए अर्थात प्रकृति के कार्यों परए उसकी रचना पर मानव अधिकार करना चाहता है। प्रारम्भ में पृथ्वी आग का गोला थी। जीवन उसमें असंभव था लेकिन लाखों साल में जब ठंडी हुई उस पर पर्त दर पर्त चढ़ती गईए फिर भीषण वर्षा ने चारों और पानी ही पानी कर दिया और वातावरण में कार्बनडाई आक्साइड और अमोनिया भर गई। बिजली गिरने से सूर्य की प्रखर किरणांे से अनेकों रासायनिक परिवर्तन हुए तो छोटे छोटे जीवणुओं की उत्पत्ति हुई। लेकिन फिर भी पृथ्वी पर जीवन का आरम्भ कैसे हुआ नहीं जान पाया है। जीवन का आरम्भ जैली के से नन्हे कण से हुआ या किसी और तरह से यह केवल अनुमान मात्र है।

स्वंय हमारा षरीर छोटे छोटे करोड़़ांे जीवाणुओं से मिलकर बना है। कालचक्र से ये जीवाणु दो प्रकार के बन गये। काई वैक्टीरिया एक तरफ और दूसरी तरफ प्रोटोजा। प्रथम प्रकार से वनस्पति का निर्माण हुआ दूसरे प्रकार से जीव जन्तु का। इस प्रकार से हम कह सकते हैं जीव जन्तुओं के पिता प्रोटोजा है जिसका जन्म समुद्र में हुआ। सर्वप्रथम काई ने फोटो सिन्थेसिस षैली के आधार पर आक्सीजन का निर्माण आरम्भ किया लेकिन उसके भी कई लाख साल अब से करीब बारह अरब वर्ष पहले पृथ्वी पर आया। 

जीवन का प्रारम्भ समुद्र में हुआ लेकिन पृथ्वी के स्थान पर उभरने से जमीन का और पहाड़ों का निर्माण हुआ और आॅक्सीजन की मात्रा बढ़ने लगी। पृथ्वी पर सर्वप्रथम जिस प्राणी का आविर्भाव हुआ वह था एम्फीबियन जो पानी और जमीन दोनों पर जीवित रह सकता था। कभी एक बार यह जीवाणु अधिक विकसित फेफेड़ों के साथ उत्पन्न हुआ और सूखी जमीन पर जीवित रहने में सफल हुआ धीरे धीरे उनकी मात्रा बढ़ी साथ ही ऊँचाई बढ़ती गई। ये जन्तु करीब 70ए000ए000 वर्ष पहले उत्पन्न हुए। ये बहुत भयानक और षक्तिषाली जन्तु ब्रोन्टोसोरस कहलाया है। चमड़ा माँस और हड्डियों का विषाल पिंडए करीब 25 मीटर लम्बाए यह जीव अपने अगले पैरों पर बड़ी मुष्किल से खड़ा हो पाता था। विषाल षरीर के मुकाबले दिमाग बहुत छोटा और अक्ल बहुत कम होती थी। कुछ जन्तु नीचे नीचे आकाष में उड़ने लगे थे वे पक्षियों के पूर्वज पैट्रोसाॅरस थे। 

abhi baki hai vah kal

Friday 20 October 2023

Rashtra Darshan

 राष्ट्र दर्षन

हमारा राष्ट्र         एषिया महाद्वीप में भारत वर्ष

राष्ट्र गीत          जन गन मन अधिनायक

राष्ट्र ध्वज          तिरंगा

राष्ट्रीय ध्येय        हर व्यक्ति का स्वराज्य

 राष्ट्रीय निष्ठा      सत्यमेव जयते 

राष्ट्रीय साधना      अहिंसा परमो धर्म  

राष्ट्रीय मंच         मानव संरक्षण मानव मात्र कास्वष्ंसिद्ध अधिकार है

 राष्ट्रीय संकल्प     जन सेवार्थ जीवेत ष्षरदः ष्षतम्

 राष्ट्रीय अभिलाषा   सर्वे भवन्तु सुखिन सर्वे सन्तु निरामया

 राष्ट्रीय भूमिका      सार्व भौम प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य

 राष्ट्रीय  भावना     मनमन मंदिर घरघर गुरुकुल गांव गांवगोकुल 

राष्ट्रीय  नीति      जीवन के ष्षाष्वत मूल्यों पर आधारित पंचषील

 राष्ट्रीय  भजन      वैष्णव जन तो तेने कहिये

राष्ट्रीय  सेवा        स्वदेषी स्वाबलंबी स्वयं सेवा

राष्ट्रीय  भाषा        हिंदी और राष्ट्र लिपि देव नागरी

राष्ट्रीय  गणवेष      कृषि गौ सेवा,उन्नत उद्योग बुनियादी षिक्षा   

राष्ट्रीय  वनचर      वनराज सिंह

राष्ट्रीय  पक्षी       मयूर

राष्ट्रीय  पुष्प       कमल

राष्ट्रीय  फल        सुरभित आम    

राष्ट्रीय चिन्ह        अषोक चक्र 

राष्ट्रीयता          वसुधैव कुटुम्बवम

राष्ट्रीय देवता       योगेष्वर विरूवा सूर्य 

राष्ट्र माता           स्वर्गादीप गरीयसी भारत माता

राष्ट्र पिता          महात्मा गांधी

राष्ट्रभविष्य           बालक राष्ट्र निर्माता





Monday 9 October 2023

sarfaroshi ki tamanna

 


‘सरफारोषी की तमन्ना अब हमारे दिल में है 

देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।’

 यह गजल राम प्रसाद विस्मिल की मानी जाती है। लेकिन इसके लेखक हैं बिस्मिल अजीमावदी। हाँ रामप्रसाद बिस्मिल इसकी पंक्तिया गाते बहुत षिदत से थे स्वंय भी षायर थे इसलिये यह उनकी गजल के रूप में प्रसिद्ध हो गई। 

‘न किसी की आँख का नूर हॅूं’ यह बहादूर ष्षाह जफर की गजल मानी जाती है लेकिन यह उनके जीवन पर उतर पूरी रही थी लिखी यह जानिसार अख्तर के पिता मुजतर खाराबादी द्वारा। 


Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...