Friday 18 December 2015

जनता रस

एक राजा के बाग में एक अदभुत वृक्ष उगा। रातों रात वह एक बड़ा वृक्ष बन गया। दूसरे दिन उसमें एक फल लगा उसमें से रस झरने लगा। राजा ने एक हंडिया उसके नीेचे लटकवा दी। प्रातः देखा तो हडि़या लबालब भरी थी। राजा नहीं चाहता था कि उस की एक बूंद भी बेकार हो। उस ने सात विद्वान बुलाये और हल पूछा कि बिना छलके हंडिया कैसे उतारी जाये। सातों विद्वान विचार विमर्श करने लगे।


एक विद्वान ने लंबी सीढ़ी लगाई और चढ़कर हडिया में झांका लाल फल का लाल शहद सा गाढ़ा रस देखकर उसका मन चखने का करने लगा उसने पेड़ से एक पत्ता तोड़ा उसकी चम्मच सी बनाई और एक चम्मच रस पी लिया। वाह! मजा आ गया। उसने एक चम्मच रस और पी लिया और बोला, सावधानी से उतारने पर उतर आयेगी।

‘देखूं’ कहकर दूसरा विद्वान चढ़ा, उसने कहा, नही अभी छलक जायेगा उसने और बड़ी पुंगी बनाई और दो चम्मच रस पी लिया, ‘अरे यह तो अदभुत रस है’। सुनकर बाकी पांचों विद्वान भी एक एक कर चढ़ें और रस पी गये अब उसमें आधा भी रस नहीं बचा था । कह देंगे बहुत जहरीला रस था इसलिये उसे गड्ढे में दबा दिया एक विद्वान ने कहा।


‘नहीं नही।... राजा यह नहीं पूछेगा कि तुम्हें कैसे मालूम ?’
‘चलो आसपास के घरों में देखते हैं जिसके घर में ऐसा कुछ पदार्थ होगा निकलवा लेंगे।’
विद्वानों ने मुनादी करवा दी जिसके पास भी लाल शहद है एक एक चम्मच इस हडिया में डाल दे नहीं तो राजा द्वारा उस स्थान के सभी मधुमक्खी के छत्ते अपने कब्जे में कर लिये जायेंगे।


इसके साथ ही वो घर घर देखनरे लगे कहां मधु मक्खी का छत्ता है। जनता घबरा गई और हडिया में डालना शुरू कर दिया। लेकिन उसका रंग वैसा लाल नही हुआ। अब विद्वान उलझन में पड़ गये राजा ने भी सीढ़ी से चढ़कर देखा था। यदि वैसा रंग नहीं मिला तो राजा समझ जायेगा और नौकरी खतरे में पड़ जायेगी।



यदि जरा सा खून मिला दिया जाये तो रंग वैसा ही हो जायेगा। एक बूंद शहद में दो बूंद खून मिलाया बिलकुल वही रंग हो गया। शहद की हाडी फिर जनता के बीच पहुंच गई, अपना एक एक बूंद रक्तदान करते जाओ तो तुम्हारा भविष्य सुरक्षित रहेगा नहीं तो जो कुछ भी है वह राज्यकोष में चला जायेगा और तुम्हें राज्यद्रोह के अपराध में जेल भेज दिया जायेगा, यह राजा का आदेश है । यदि अपना रक्त खुशी खुशी दोगे तो राजा में बहुत ताकत आ जायेगी वह दूने जोश से तुम्हारे हित के लिये काम करेगा।


मरती क्या न करती जनता रक्त देती गई। राजा ने विद्वानों को बिना रस फैलाये रस लाने के लिये मालामाल कर दिया फिर रस चखा, रक्त पीकर राजा में शक्ति आई तो उसने उस वृक्ष के फल के और बीज लगा दिये विद्वान असली रस अब अपने घर वालों को भी पिलाने लगे। जनता बार बार हडिया भरती विद्वानों के चेहरे चमकने लगे और जनता सूखने लगी।

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