Wednesday 16 December 2015

मैं हिन्दुस्तान में हूँ का पिछला भाग

लेकिन बड़ी बड़ी मूछों वाले बंदूक वालों ने धकिया दिया। स्वर्ग द्वार से बाहर का रास्ता दिखा दिया जहाँ मुझ जैसे हजारों, सुंदरियों की झलक पाने को खड़े थे। खींच खींच मुझे बाहर उस द्वार पर फेंक दिया गया जहाँ से उस एक घंटे के लिये हजारों रुपये के टिकिट लेने वाले सुरा सुंदरी के नशे में बाहर आये  घर जाने की जल्दी में थे क्योंकि देवियाॅं घर में इंतजार कर रही होंगी । उन से एक रुपया पाने की आशा में बच्चे उन के पीछे गिड़गिड़ाते भाग रहे थे। नहीं मैं स्वर्ग में नहीं हिन्दुस्तान ही में हूँ।



अरे यह क्या ? मैं हकबका गया। रोषनी ही रोषनी, फूल ही फूल,देषी विदेषी फूलों के गुच्छे, फूलों की झालरें चारों ओर झिलमिल झिलमिल, प्रवेष द्वार पर अप्सराऐं  सुगन्धित फूलों की मालाओं से स्वागत कर रही थीं । गुलाबपाष से केवड़ा गुलाब जल के झरने झर रहे थे ।


थेाड़ी-थोड़ी दूर पर छोटे छोटे फुव्वारे  रंगीन,सुगंधित फुहारें छोड़ रहे थे । चारो ओर जगर मगर, जगर मगर महिलाओं के बड़े बड़े हीरे मंडित कुंडल ,हार कंगन । दमदम दमकती पोषाकें,सजे बने पुरुष ।


राजाओं की पोषाक पहने बैरे हाथों में खाद्य पदार्थ और पेय पदार्थ लिये घूमते झुक झुक कर पेष कर रहे थे । दूर दूर तक स्टाॅल ही स्टाॅल । पहले पेय पदार्थों की लम्बी कतार ,फिर एक से एक विदेषी फल,चाट फिर प्रारम्भ हुआ सिलसिला प्रादेषिक चाट का ,बच्चों के प्रिय खाद्य पदाथों का ।


फिर प्रांतीय व्यंजन, फिर अन्र्तराष्ट्रीय व्यंजन मतलब पूरी दुनिया सिमट आई थी। दूर दूर तक केक पेस्ट्री मिठाई सजी थी । अरे यह तो मैं पेरिस  के फूड फैस्टीवल में आ गया ।



‘अरे ! यह पास्ता बेकार है आगे कुछ और लेंगे, छोड़ नहीं खाया जा रहा फेंक दे,’ परिवार भरी प्लेट डस्टबिन में डाल दूसरे स्टाॅल पर बढ़ गया ,‘मैक्सीकन पुलाव खाते हैं ‘बहुत मिर्च है ,पानी से पेट भर लेगा  छोड़ इसे’  । ष्हर चेहरा अपने को वी आई पी समझ रहा था ।



इतनी बड़ी दावत में वह है वह गौरवान्वित था ,और ज्यादा से ज्यादा समय बिता कर अपना चेहरा समाज को दिखा रहा था । एक किनारे पर ष्षोर उठा ,दो व्यक्तियों की जूतों से पिटाई हो रही थी । वे न लड़की वाले के रिष्तेदार थे न लड़के वाले के । वे भूख के नजदीकी थे खाना देख घुस आये थे । उनके हाथ से प्लेट छीन कूड़ेदान में डाल दीं और उन्हें मार कर भगा दिया ।


वेटर आये भरी भरी प्लेटों से भरे डस्टबिन उठाकर पांडाल के पीछे मैदान में डाल आये जहाॅं औरतें बच्चे थैलियाॅं लिये तैयार बैठे थे और छीन छीन कर खाना उठा उठा थैलियों में भरने लगे ।
नहीं में पेरिस में नहीं हिन्दुस्तान में हॅूं

मैं हिन्दुस्तान में हूँ का पिछला भाग

1 comment:

  1. लेकिन अब इसमें हम और आप कर भी क्या सकते हैं
    वो कहते हैं न कि अकेला चना भाड नहीं फोड़ सकता

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