Monday 29 August 2016

जब पहली बार आकाश चूमा

 जून 5, 1783 फ्रांस लाइओन्स के निकट ऐनानेय शहर में भारी भीड़ जमा थी। पाउडर और विगों से सजे अधिकारी, संभ्रान्त नागरिक रेशमी वस्त्रों और लम्बे लम्बे गाउन पहने महिलायें आदि। उसी भीड़ किसान एवम सभी धर्म और जाति के लोग थे। सड़कें ऐसे लग रही थी जैसे कोई बड़े उत्सव का दिन हो। सड़कों पर प्रति दिन की सी व्यापारिक भाग दौड़ नहीं थी बस सब एक ही दिशा में जा रहे थे और एक विज्ञान मैदान में एकत्रित हो रहे थे। सबसे आगे उच्च अधिकारी, माननीय अतिथि आदि थे उनके पीछे ही उत्सुक पुरुष स्त्रियों की हजारों की भीड़ थी।
       उनके बीच में एक अजीब सी वस्तु रखी थी। वह थी एक लिनिन का विशाल टुकड़ा जिसे  गुब्बारे की शक्ल दी गई थी। करीब सौ फुट गोलाकार वस्तु को भीड़ हैरत से देख रही थी। लिनेन के नीचे कागज चिपकाया गया था और यह एक बड़ी अंगीठी के ऊपर ररख हुआ था। गुब्बारे के नीचे गोल घेरा कटा था जो लिफाफे की तरह बंद हो जाता था, ठीक उसी के नीचे अंगीठी थी। गीले ईंधन के कारण उसमें से गहरा घुआ उठ रहा था और गुब्बारे में भरता जा रहा  था। कर्मचारी ईंधन बराबर अंगीठी में झोंक रहे थे। जैसे जैसे अग्नि बढ़ती गई और धुआं ऊपर से साफ होता गया गुब्बारा एक दम चमक उठा बड़े बड़े अक्षरों में उसका नाम एयरो स्टेट और उसे बनाने वाले का नाम चमकने लगा।

       एकाएक भीड़ जोर से चिल्ला उठी। एयरोस्टेट हिला और उसने जमीन छोड़नी प्रारम्भ की और फिर हिलता हिलता वह ऊपर उठ चला। जैसे जैसे वह ऊँचा गया लोगों की सांस रुक गई। लोगों की आंखे बिंदु की तरह चमकते पृथ्वी से एक मील ऊपर उठे एयरोस्टेट को घूर रही थी। वह शानदार यात्रा करीब दस मिनट तक रही। फिर वह लिनन का गुब्बारा तेजी से करीब डेढ़ मील दूर गिर पड़ा धीरे धीरे भीड़ छट गई। प्रयोग समाप्त हो चुका था लेकिन पहली हवाई यात्रा प्रारम्भ हो चुकी थी। मनुष्य की आकाश पर विजय का एक दृश्य।A

No comments:

Post a Comment

आपका कमेंट मुझे और लिखने के लिए प्रेरित करता है

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...